“कथनी करनी में इतना भेद …”

 

वाह रे! मानव तेरा दोहरा चरित्र
देख मन मेरा अकुलाता है
कथनी करनी में इतना भेद
कैसे तूं कर पाता है?

पूजता है देवी के नौ रूप
देख रूपसी तेरा मन ललचाता है
जिस माँ की करता है भक्ति
भक्षक उसका बन जाता है
कथनी करनी में इतना भेद …

कन्या भोजन में धर्म मानता
कन्या भ्रूण मरवाता है
तेरे ऐसे कूकृत्यों से
प्रश्न मानवता पर लग जाता है
कथनी करनी में इतना भेद ..

सरस्वती का साधक बनकर
कागज कलम उठाता है
स्वार्थ के वशीभूत होकर
सौदागर लक्ष्मी का बन जाता है
कथनी करनी में इतना भेद …

गृहलक्ष्मी के कुकूंम पैरों से
आंगन तूं सजवाता है
दहेज की बलिवेदी पर
जिंदा उसे जलाता है
कथनी करनी में इतना भेद …

जो करता सदा सम्मान नारी का
सच्चा आराधक कहलाता है
बिना किसीअनुष्ठान क्रिया के
माँ के दिल में बस जाता है
कथनी करनी में इतना भेद …

आज हिन्दी दिवस है।हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा है हिन्दी ।क्या किसी भी अन्य राष्ट्र में राष्ट्रभाषा दिवस मनाया जाता है? क्या यह हमारा अपनी राष्ट्भाषा के लिए अतिरिक्त सम्मान है ?अथवा हिंदी की लोकप्रियता को प्रोत्साहित करने का विशिष्ट आयोजन?

हिन्दुस्तान की माटी में जन्म लिया है
क्यों आती है हिंदी बोलने में शर्म
हिंदी भाषा के सम्मान की सूरक्षा
हर हिन्दुस्तानी का है धर्म ।

गाएं विजय का गीत रे……

गाएं विजय का गीत रे
गाएं विजय का गीत रे

दिल में रख तूं बुलंद इरादा
क्यों बना इतना भयभीत रे
गाएं विजय का गीत रे

हो रात अंधेरी कितनी भी लंबी
आखिर जाए बीत रे
गाएं विजय का गीत रे

न हो निराश तूं अपनी हार से
हर ‘आज’ बने अतीत रे
गाएं विजय का गीत रे

लेश मात्र ना द्वेष दिखा
जोड़ सबसे प्रीत रे
गाएं विजय का गीत रे

एक दुजे का साथ निभा
बनकर मन का मीत रे
गाएं विजय का गीत रे

मन के हारे हार है
मन के जीते जीत रे
गाएं विजय का गीत रे

स्नेहलता सेठिया